Wednesday, October 26, 2016

नृत्य प्रतियोगिता


नृत्य प्रतियोगिता
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एक बार श्यामसुन्दर के मन में श्री किशोरी जू और उनकी सभी सखियों का नृत्य देखने की इच्छा हुई। नटखट कान्हा अपने सखाओं से बोले यदि हम एक नृत्य प्रतियोगिता रखें और इन सब गोपियों को हरा दें तो कितना आनन्द हो। उनकी शरारती मित्र मण्डली उछल कूद तो खूब जाने पर नृत्य करना सबके बस की बात कहाँ।
श्यामसुन्दर ने नृत्य प्रतियोगिता की बात श्यामा जू और उनकी सखियों से कही जिसे श्यामा और सब सखियों ने हँसकर स्वीकृति दे दी। इस नृत्य प्रतियोगिता में जितने वाले को हारने वाले से अपनी मनचाही बात मनवानी थी। प्रतियोगिता के लिए उपयुक्त स्थान और समय नियत हो गया।
श्यामा और उनकी सारी सखियाँ तो नृत्य संगीत में अद्भुत प्रवीण थीं। सब ताल से ताल मिला नाचने और गाने लगीं। दूसरी और नटखट मित्र मण्डली को उछल कूद से ना फुर्सत मिले न ही नाच गान के लिए कोई प्रयास हुआ।
प्रतियोगिया का दिन पास आ गया अब श्यामसुन्दर अपने सखाओं से कहते हैँ यदि हमने अभी भी कोई प्रयास नहीं किया तो हमारी नाक कट जावेगी। सब सखा बेसुरी ताल दे गाने और नृत्य का अभ्यास करने लगे। आहा ! उनके इस प्रयास को देख श्यामा और उनकी सखियों की हँसी छूट रही थी परन्तु उन्होंने नोक झोंक करना उपयुक्त नहीं समझा।
प्रतियोगिता का दिन आ गया। नियत समय पर प्रतियोगिता शुरू हुई। कान्हा और उनकी नटखट मण्डली का नृत्य संगीत देख देख श्यामा और उनकी सखियाँ खूब हँसी । अब श्यामा और उनकी सखियों की बारी आई। अद्भुत नृत्य और गान हुआ। बलिहारी बलिहारी ऐसा नृत्य संगीत देख श्यामसुन्दर का मन मुग्ध हो गया। प्रतियोगिता तो मात्र एक बहाना था उनको तो इस अद्भुत आनंद की चाह थी। अब सखियाँ बोली श्यामसुन्दर आप और सारी सखा मण्डली हार गयी है अब आपको अपनी हार स्वीकार करनी होगी और हमारी श्यामा जू के चरण छूने होंगें। आहा ! आनन्द एक तो प्यारी जू का सखियों संग अद्भुत नृत्य देखा और सखियों ने प्यारी जू की चरण सेवा दिलवा दी। श्यामसुन्दर आज अपने सौभाग्य पर प्रसन्न हो रहे हैँ। श्यामसुन्दर के हृदय में कोई अभिलाषा हो और वो श्यामा पूरी नहीं करें ऐसा तो कभी सम्भव ही नहीं हुआ। श्यामा अपने प्रियतम श्यामसुन्दर से अभिन्न ही हैँ।
ऐसी अद्भुत प्रीती पर पुनः पुनः बलिहारी।
जय जय श्री राधे

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Shrimati RadhaRani ki Charan Sewa


युगल रूप
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एक सखी बहुत सुंदर पायल लेकर स्वामिनी जू की सेवा में जाती है। मन में यही भाव आहा ! आज तो मेरे अहोभाग्य मुझे श्री जू के चरण छूने का सुअवसर मिल रहा । श्री जू के कोमल चरणों को छू पाऊँगी मैं। कहीँ मेरे स्पर्श से कोमलांगी श्री किशोरी जू को कष्ट तो न होगा। मन में यही भाव लिए श्री जू की और चलती है। हृदय में स्वामिनी जू का नाम ही ध्वनित हो रहा है। राधा राधा राधा ........

मार्ग में उसे कान्हा रोक लेते हैँ और उसे कान्हा भी आज श्री जू दिखाई पड़ते हैँ। राधा जू मैं तो आपके पास ही आ रही थी। आज मुझे आपके चरणों को छूने का सौभाग्य मिला है। ये पायल मुझे आपके चरणों में अर्पित करनी है। अरे बाँवरी ! तुझे क्या हुआ है मैं तुझे राधा दीख रहा हूँ । ये क्या लाई है तू राधा जू के लिए। सखी कहती है स्वामिनी जू ये पायल आपके लिए ही तो लाई हूँ । कान्हा उसके हाथ से पायल पकड़ लेते हैँ तो सखी कहती है प्यारी जू मुझे अपने चरण न छूने दोगी । लाओ मैं पहना दूँ । कान्हा कहते हैँ बाँवरी तू आज भर्मित जान पड़ती है। यहां बैठ जा। तभी कान्हा अपनी बाँसुरी निकालकर बजाने लगते हैँ। कान्हा की बांसुरी तो एक ही नाम पुकारती है राधा राधा राधा ......... देख मैं कान्हा हूँ । सखी कहती है अच्छा कान्हा हो । कान्हा कान्हा कान्हा ....... यही बोलते हुए उठकर श्री जू के सन्मुख पहुंच जाती है।

श्री जू के पास जाकर उनसे कहने लगती है कान्हा ! मुझे फिर से बांसुरी सुनाओ ना । तुम बाँसुरी में प्यारी जू का नाम लेते हो तो मन करता है तुम्हारी बांसुरी सदा बजती ही रहे। श्री जू उस सखी को पकड़ कर हिलाती हैँ। श्री जू कहती हैँ तुझे आज क्या हो गया मैं कान्हा नहीं हूँ बांसुरी तो कान्हा के पास है। श्री जू के छूने से जाने क्या हो जाता है। सखी उनके चरणों को पकड़ लेती है और कहती है कान्हा एक बार और सुनाओ मुझे बांसुरी में प्यारी जू का नाम। तभी वहां कान्हा आ जाते हैँ ।

राधा और कान्हा एक दूसरे को देख देख आनन्दित होने लगते हैँ। ये उन्हीं का ही तो प्रेम है जो सखी उनको अभिन्न देख रही है। कान्हा को प्यारी जू और प्यारी जू को राधा देख रही है। ये वास्तव में युगल प्रेम ही है जहाँ एक क्षण को भी प्रिया प्रियतम का वियोग ही नहीं है।

इस अद्भुत प्रेम की जय हो।
जय जय श्री राधे

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